सोलह सोमवार व्रत कथा

सोलह सोमवार व्रत कथा विधि:

इस सोलह सोमवार व्रत को सम्भव हो सके तो , श्रावण मास से ही शुरू करना चाहिए और लगातार 16 सोमवार तक इस व्रत को करते है | सोलह सोमवार व्रत में व्यक्ति को प्रातः स्नान करके शिव जी को जल और बेल पत्र चढ़ाना चाहिए | शिव पूजन के बाद सोलह सोमवार व्रत कथा सुननी चाहिए| इसके बाद केवल एक समय ही भोजन करना चाहिए| साधारण रूप से सोलह सोमवार का व्रत दिन के तीसरे पहर तक होता है| मतलब शाम तक रखा जाता है|

सोमवार व्रत तीन प्रकार का होता है प्रति सोमवार व्रत, सौम्य प्रदोष व्रत और सोलह सोमवार का व्रत| इन सभी व्रतों के लिए एक ही विधि होती है|सोमवार व्रत का हिन्दू धर्म में बहुत बड़ा महत्व है क्योंकि ये व्रत भगवान शिव और माता पार्वती को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है | वैसे इस व्रत का कठोर रूप से पालन करने वाले दिन में “ॐ नम: शिवाय ” का जाप करते रहते है |

इस व्रत को आप शाम 4 या 5 बजे तक खोल सकते है | इस व्रत में फलाहार पर कोई प्रतिबन्ध नही होता है लेकिन भोजन दिन में एक बार ही करना चाहिए |

वैसे तो इस व्रत को कोई भी कर सकता है लेकिन अविवाहित लडकिया सुंदर वर के लिए इस व्रत को करती है और विवाहित औरते अपने लम्बे और सुखी वैवाहिक जीवन के लिए इस व्रत को करती है | पुरुष इस व्रत को इसलिए करते है ताकि सुखी और शांतिपूर्ण जीवन बिता सके | इस व्रत का पालन करने वाले को व्रत खोलते समय केवल शाकाहारी भोजन करना चाहिए | सोलह सोमवार व्रत की कथा इस प्रकार है एक बार शिवजी और माता पार्वती मृत्यु लोक पर घूम रहे थे | घूमते घूमते वो विदर्भदेश के अमरावती नामक नगर में आये | उस नगर में एक सुंदर शिव मन्दिर था इसलिए महादेव जी पार्वती जी के साथ वहा रहने लग गये |

एक दिन बातो बातो में पार्वती जी ने शिवजी को चौसर खेलने को कहा | शिवजी राजी हो गये और चौसर खेलने लग गये | उसी समय मंदिर का पुजारी दैनिक आरती के लिए आया | पार्वती ने पुजारी से पूछा “बताओ , हम दोनों में चौसर में कौन जीतेगा ” | वो पुजारी भगवान शिव का भक्त था और उसके मुह में तुंरत निकल पड़ा “महादेव जी जीतेंगे ” | चौसर का खेल खत्म होने पर पार्वती जी जीत गयी और शिवजी हार गये |

पार्वती जी ने क्रोधित होकर उस पुजारी को श्राप देना चाहा तभी शिवजी ने उन्हें रोक दिया और कहा कि ये तो भाग्य का खेल है उसकी कोई गलती नही है | फिर भी माता पार्वती ने उस कोढ़ी होने का श्राप दे दिया और उसे कोढ़ हो गया |काफी समय तक वो कोढ़ से पीड़ित रहा | एक दिन एक अप्सरा उस मंदिर में शिवजी की आराधना के लिए आये और उसने उस पुजारी के कोढ को देखा | अप्सरा ने उस पुजारी को कोढ़ का कारण पूछा तो उसने सारी घटना उसे सुना दी | अप्सरा ने उस पुजारी को कहा “तुम्हे इस कोढ़ से मुक्ति पाने के लिए सोलह सोमवार व्रत करने चाहिए ” |

उस पुजारी ने व्रत करने की विधि पूछी | अप्सरा ने बताया “सोमवार के दिन नहा धोकर साफ़ कपड़े पहन लेना और आधा किलो आटे से पंजरी बना देना , उस पंजरी के तीन भाग करना , प्रदोष काल में भगवान शिव की आराधना करना , इस पंजरी के एक तिहाई हिस्से को आरती में आने वाले लोगो को प्रसाद के रूप में देना , इस तरह सोलह सोमवार तक यही विधि अपनाना , 17वे सोमवार को एक चौथाई गेहू के आटे से चूरमा बना देना और शिवजी को अर्पित कर लोगो में बाट देना , इससे तुम्हारा कोढ़ दूर हो जायेगा “| इस तरह सोलह सोमवार व्रत करने से उसका कोढ़ दूर हो गया और वो खुशी खुशी रहने लगा |

एक दिन शिवजी और पार्वती जी दुबारा उस मंदिर में लौटे और उस पुजारी को एकदम स्वास्थ्य देखा | पार्वती जी ने उस पुजारी से स्वास्थ्य होने का राज पूछा | उस पुजारी ने कहा उसने 16 सोमवार व्रत किये जिससे उसका कोढ़ दूर हो गया | पार्वती जी इस व्रत के बारे में सुनकर बहुत प्रस्सन हुएए | उन्होंने भी ये व्रत किया और इससे उनका पुत्र वापस घर लौट आया और आज्ञाकारी बन गया | कार्तिकेय ने अपनी माता से उनके मानसिक परविर्तन का कारण पूछा जिससे वो वापस घर लौट आये | पार्वती ने उन्हें इन सब के पीछे सोलह सोमवार व्रत के बारे में बताया | कार्तिकेय ये सुनकर बहुत खुश हुए |

एक दिन शिवजी और पार्वती जी दुबारा उस मंदिर में लौटे और उस पुजारी को एकदम स्वास्थ्य देखा | पार्वती जी ने उस पुजारी से स्वास्थ्य होने का राज पूछा | उस पुजारी ने कहा उसने 16 सोमवार व्रत किये जिससे उसका कोढ़ दूर हो गया | पार्वती जी इस व्रत के बारे में सुनकर बहुत प्रस्सन हुएए | उन्होंने भी ये व्रत किया और इससे उनका पुत्र वापस घर लौट आया और आज्ञाकारी बन गया |

कार्तिकेय ने अपनी माता से उनके मानसिक परविर्तन का कारण पूछा जिससे वो वापस घर लौट आये | पार्वती ने उन्हें इन सब के पीछे सोलह सोमवार व्रत के बारे में बताया | कार्तिकेय ये सुनकर बहुत खुश हुए | एक दिन राजकुमारी ने ब्राह्मण से पूछा “आपने ऐसा क्या पुन्य किया जो हथिनी ने दुसरे सभी राजकुमारों को छोडकर आपके गले में वरमाला डाली “| उसने कहा “प्रिये , मैंने अपने मित्र कार्तिकेय के कहने पर सोलह सोमवार व्रत किये थे उसी के परिणामस्वरुप तुम मुझे लक्ष्मी जैसी दुल्हन मिली ” |

राजकुमारी ये सुनकर बहुत प्रभावित हुए और उसने भी पुत्र प्राप्ति के लिए सोलह सोमवार व्रत रखा | फलस्वरूप उसके एक सुंदर पुत्र का जन्म हुआ और जब पुत्र बड़ा हुआ तो पुत्र ने पूछा “माँ , आपने ऐसा क्या किया जो आपको मेरे जैसा पुत्र मिला ” | उसने भी उसके पुत्र को सोलह सोमवार व्रत की महिमा बताई | ये सूनकर उसने भी राजपाट की इच्छा के लिए ये व्रत रखा |

उसी समय एक राजा अपनी पुत्री के विवाह के लिए वर तलाश कर रहा था तो लोगो ने उस बालक को विवाह के लिए उचित बताया | राजा को इसकी सुचना मिलते ही उसने अपनी पुत्री का विवाह उस बालक के साथ कर दिया | कुछ सालो बाद जब राजा की म्रत्यु हुयी तो वो राजा बन गया क्योंकि उस राजा के कोई पुत्र नही था | राजपाट मिलने के बाद भी वो सोमवार व्रत करता रहा |

एक दिन 17वे सोमवार व्रत पर उसकी पत्नी को भी पूजा के लिए शिव मंदिर आने को कहा लेकिन उसने खुद आने के बजाय दासी को भेज दिया | ब्राह्मण पुत्र के पूजा खत्म होने के बाद आकाशवाणी हुयी “तुम्हारी पत्नी को अपने महल से दूर रखो ,वरना तुम्हारा विनाश हो जाएगा ” | ब्राह्मण पुत्र ये सुनकर बहुत आश्चर्यचकित हुआ | महल वापस लौटने पे उसने अपने दरबारियों को भी ये बात बताई तो दरबारियों ने कहा कि जिसकी वजह से ही उसे राजपाट मिला है वो उसी को महल से बाहर निकालेगा | लेकिन उस ब्राहमण पुत्र ने उसे महल से बाहर निकल दिया |

वो राजकुमारी भूखी प्यासी एक अनजान नगर में आयी | वहा पर एक बुढी औरत धागा बेचने बाजार जा रही था | जैसे ही उसने राजकुमारी को देखा तो उसने उसकी मदद करते हुए उसके साथ व्यापार में मदद करने को कहा | राजकुमारी ने भी एक टोकरी अपने सर पर रख दी | कुछ दूरी पर चलने के बाद एक तूफान आया और वो टोकरी उडकर चली गयी | अब वो बुढी औरत रोने लग गयी और उसने राजकुमारी को मनहूस मानते हुए चले जाने को कहा |

उसके बाद वो एक तेली के घर पहुची | उसके वहा पहुचते ही सारे तेल के घड़े फुट गये और तेल बहने लग गया | उस तेली ने भी उसे मनहूस मानकर उसको वहा से भगा दिया | उसके बाद वो एक सुंदर तालाब के पास पहुची और जैसे ही पानी पीने लगी उस पानी में कीड़े चलने लगे और सारा पानी धुंधला हो गया | अपने दुर्भाग्य को कोसते हुए उसने गंदा पानी पी लिया और पेड़ के नीचे सो गयी |

जैसे ही वो पेड़ के नीचे सोयी उस पेड़ की सारी पत्तिय झड़ गयी | अब वो जिस पेड़ के पास जाती उसकी पत्तिया गिर जाती थी | ऐसा देखकर वहा के लोग मंदिर के पुजारी के पास गये | उस पुजारी ने उस राजकुमारी का दर्द समझते हुए उससे कहा :बेटी , तुम मेरे परिवार के साथ रहो , मै तुम्हे अपनी बेटी की तरह रखूंगा , तुम्हे मेरे आश्रम में कोई तकलीफ नही होगी ” |

इस तरह वो आश्रम में रहने लग गयी अब वो जो भी खाना बनाती या पानी लाती उसमे कीड़े पड़ जाते | ऐसा देखकर वो पुजारी आश्चर्यचकित होकर उससे बोला “बेटी , तुम पर ये कैसा कोप है जो तुम्हारी ऐसी हालत है ” | उसने वही शिवपूजा में ना जाने वाली कहानी सुनाई | उस पुजारी ने शिवजी की आराधना की और उसको सोलह सोमवार व्रत करने को कहा | इससे उसे जरुर राहत मिलेगी |

उसने सोलह सोमवार व्रत किया और 17वे सोमवार पर ब्राह्मण पुत्र उसके बारे में सोचने लगा “वो कहा होगी , मुझे उसकी तलाश करनी चाहिये ” | इसलिए उसने अपने आदमी भेजकर अपनी पत्नी को ढूंढने को कहा | उसके आदमी ढूंढने ढूंढने उस पुजारी के घर पहुच गये और उन्हें वहा राजकुमारी का पता चल गया | उन्होंने पुजारी से राजकुमारी को घर ले जाने को कहा लेकिन पुजारी ने मना करते हुए कहा “अपने राजा को खो कि खुद आकर इसे ले जाए ” |

राजा खुद वहा पर आया और राजकुमारी को वापस अपने महल लेकर आया | इस तरह जो भी ये सोलह सोमवार व्रत करता है उसकी सभी मनोकामनाए पुरी होती है |

आरती

ॐ जय शिव ओंकारा, प्रभु हर शिव ओंकारा ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा ॐ जय शिव ओंकारा ॐ जय शिव ओंकारा, प्रभु हर शिव ओंकारा ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा ॐ जय शिव ओंकारा

एकानन चतुरानन पञ्चानन राजे स्वामी पञ्चानन राजे हंसासन गरूड़ासन हंसासन गरूड़ासन वृषवाहन साजे

ॐ जय शिव ओंकारा दो भुज चार चतुर्भुज, दसभुज ते सोहे स्वामी दसभुज ते सोहे तीनों रूप निरखता तीनों रूप निरखता त्रिभुवन मन मोहे

ॐ जय शिव ओंकारा अक्षमाला वनमाला मुण्डमाला धारी स्वामी मुण्डमाला धारी चन्दन मृगमद चंदा चन्दन मृगमद चंदा भोले शुभ कारी

ॐ जय शिव ओंकारा श्वेताम्बर, पीताम्बर, बाघाम्बर अंगे स्वामी बाघाम्बर अंगे ब्रह्मादिक संतादिक ब्रह्मादिक संतादिक भूतादिक संगे

ॐ जय शिव ओंकारा कर मध्ये च’कमण्ड चक्र त्रिशूलधरता स्वामी चक्र त्रिशूलधरता जग कर्ता जग हरता जग कर्ता जग हरता जगपालन करता

ॐ जय शिव ओंकारा ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव जानत अविवेका स्वामी जानत अविवेका प्रनाबाच्क्षर के मध्ये प्रनाबाच्क्षर के मध्ये ये तीनों एका

ॐ जय शिव ओंकारा त्रिगुणस्वामी जी की आरति जो कोइ जन गावे स्वामी जो कोइ जन गावे कहत शिवानन्द स्वामी कहत शिवानन्द स्वामी मनवान्छित फल पावे

ॐ जय शिव ओंकारा ॐ जय शिव ओंकारा, प्रभु हर शिव ओंकारा ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा

ॐ जय शिव ओंकारा ॐ जय शिव ओंकारा, प्रभु हर शिव ओंकारा ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा ॐ जय शिव ओंकारा

——–जयकारा वीर बजरंगी हर हर महादेव———-