सोम प्रदोष व्रत कथा

सोम प्रदोष व्रत कथा

सोम प्रदोष व्रत पूजा विधि:

प्रदोष काल दरअसल उस समय को कहते हैं, जब सूर्यास्त हो गया हो, लेकिन रात अभी नहीं आई हो. यानी सूर्यास्त के बाद और रात होने से पहले के बीच जो अवधि होती है, उसे ही प्रदोष काल कहा जाता है. सोम प्रदोष व्रत के दिन इसी समयावधि के दौरान यदि भगवान शंकर की विधिवत पूजा की जाती है तो वह सारी मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं. सोम प्रदोष व्रत की पूजा शाम 4:30 बजे से लेकर शाम 7:00 बजे के बीच की जाती है.

– सुबह स्नान कर भगवान शंकर को बेलपत्र, गंगाजल, अक्षत, धूप, दीप आदि चढ़ाएं और पूजा करें.
– मन में व्रत रखने का संकल्प लें.
– शाम को एक बार फिर स्नान कर भोलेनाथ की पूजा करें और दीप जलाएं. शाम को प्रदोष व्रत कथा पढ़ें. यह कथा दूसरों को सुनाने का विशेष लाभ मिलता है.

सोम प्रदोष व्रत कथा:

एक नगर में एक ब्राह्मणी अकेले रहती थी. उसके पति का स्वर्गवास हो गया था. पति के जाने के बाद उसका कोई सहारा नहीं बचा. इसलिए सुबह-सुबह वह अपने पुत्र के साथ भीख मांगने निकल पड़ती. भिक्षाटन से जो कुछ मिलता था, उससे वह अपना और अपने पुत्र का पेट पालती थी. ब्राह्मणी नियमपूर्वक प्रदोष व्रत करती थी एक दिन ब्राह्मणी अपने पुत्र के साथ जब घर लौट रही थी तो रास्ते में उसे एक लड़का घायल अवस्था में रास्ते पर गिरा मिला. ब्राह्मणी को दया आ गई और वह उसे अपने घर ले आई.

वह कोई मामूला लड़का नहीं था, वह विदर्भ राज्य का राजकुमार था. वह युद्ध में घायल हो गया था और शत्रुओं ने उसके पिता को बंदी बना लिया था. शत्रुओं के हाथों हारने के बाद वह यहां-वहां मारा-मारा फिर रहा था. वह ब्राह्मणी के घर में ही रहने लगा. राजकुमार बेहद खूबसूरत और आकर्षक था. एक दिन अंशुमति नामक एक गंधर्व कन्या ने राजकुमार को देखा और उस पर मोहित हो गई. अगले दिन अंशुमति अपने माता-पिता को राजकुमार से मिलाने लाई. उन्हें भी राजकुमार भा गया.

कुछ दिनों बाद अंशुमति के माता-पिता को शंकर भगवान ने स्वप्न में आदेश दिया कि राजकुमार और अंशुमति का विवाह कर दिया जाए. उन्होंने वैसा ही किया. ब्राह्मणी प्रदोष व्रत करती थी और उसके व्रत के प्रभाव से ही राजकुमार को गंधर्वराज की राजकुमारी अंशुमति मिली. गंधर्वराज की सेना की सहायता से राजकुमार ने विदर्भ से शत्रुओं को खदेड़ दिया और पिता के राज्य को पुनः प्राप्त कर आनन्दपूर्वक रहने लगा. राजकुमार ने ब्राह्मण-पुत्र को अपना प्रधानमंत्री बनाया. ब्राह्मणी के प्रदोष व्रत के माहात्म्य से जैसे राजकुमार और ब्राह्मण-पुत्र के दिन फिरे, वैसे ही शंकर भगवान अपने दुसरे भक्तों के दिन भी फेरते हैं.

सोम प्रदोष व्रत आरती:

ॐ जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा. ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा॥ॐ॥ एकानन चतुरानन पञ्चानन राजे. हंसासन गरूड़ासन वृषवाहन साजे॥ॐ॥ दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे. त्रिगुण रूप निरखते त्रिभुवन जन मोहे॥ॐ॥ अक्षमाला वनमाला मुण्डमाला धारी. त्रिपुरारी कंसारी कर माला धारी॥ॐ॥ श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे. सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे॥ॐ॥

कर के मध्य कमण्डलु चक्र त्रिशूलधारी. सुखकारी दुखहारी जगपालन कारी॥ॐ॥ ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका. मधु-कैटभ दो‌उ मारे, सुर भयहीन करे॥ॐ॥ लक्ष्मी व सावित्री पार्वती संगा. पार्वती अर्द्धांगी, शिवलहरी गंगा॥ॐ॥ पर्वत सोहैं पार्वती, शंकर कैलासा. भांग धतूर का भोजन, भस्मी में वासा॥ॐ॥ जटा में गंग बहत है, गल मुण्डन माला. शेष नाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला॥ॐ॥

काशी में विराजे विश्वनाथ, नन्दी ब्रह्मचारी. नित उठ दर्शन पावत, महिमा अति भारी॥ॐ॥ त्रिगुणस्वामी जी की आरति जो कोइ नर गावे. कहत शिवानन्द स्वामी, मनवान्छित फल पावे॥ॐ॥

,,,,,,,,,,,,””””””””””’जयकारा वीर बजरंगी हर हर महादेव”””””””””””””,,,,,,,,,,,,