श्रीरामचंद्र कृपालु भजु मन हरण भव भय दारुणं |
नवकंज-लोचन, कंज-मुख, कर-कंज पद कंजारुणं ||
हे मन! कृपालु श्रीरामचंद्रजी का भजन कर |
वे संसार के जन्म-मरणरूप दारुण भय को दूर करने वाले हैं,
उनके नेत्र नव-विकसित कमल के सामान हैं,
मुख-हाथ और चरण भी लाल कमल के सदृश हैं |
कंदर्प अगणित अमित छबि, नवनील-नीरद सुंदरं |
पट पीत मानहु तड़ित रूचि शुचि नौमी जनक सुतावरं ||
उनके सौन्दर्य की छटा अगणित कामदेवों से बढ़कर है,
उनके शरीर का नवीन नील-सजल मेघ के जैसा सुन्दर वर्ण है,
पीताम्बर मेघरूप शरीरों में मानो बिजली के सामान चमक रहा है,
ऐसे पावन रूपजानकी पति श्रीरामजी को मैं नमस्कार करता हूँ |
भजु दीनबंधु दिनेश दानव-दैत्यवंश-निकन्दनं |
रघुनंद आनँदकंद कोशलचंद दशरथ-नन्दनं ||
हे मन ! दीनों के बन्धु, सूर्य के सामान तेजस्वी,
दानव और दैत्यों के वंश का समूल नाश करने वाले,
आनंदकंद, कोशल-देशरूपी आकाश में निर्मल चंद्रमा के सामान
दशरथनंदन श्रीराम का भजन कर |
सिर मुकुट कुंडल तिलक चारु उदारु अंग विभूषणं |
आजानुभुज शर-चाप-धर, संग्राम-जित-खरदूषणं ||
जिनके मस्तक पर रत्न-जटित मुकुट, कानों में कुंडल,
भाल पर सुन्दर तिलक और प्रत्येक अंग में सुन्दर आभूषण सुशोभित हो रहे हैं,
जिनकी भुजाएँ घुटनों तक लम्बी हैं, जो धनुष-बाण लिए हुए हैं||
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