शुक्रवार व्रत कथा:

माँ संतोषी

संतोषी माता को सभी इच्छाओं को पूरा करके संतोष प्रदान करने वाली देवी माँ के रूप में जाना जाता हैं. उनके नाम का भी यही अर्थ हैं. यह विघ्नहर्ता श्री गणेश की बेटी हैं, जो सभी दुखों और परेशानियों को हर लेती हैं, भक्तों के दुर्भाग्य को दूर करती हैं और उन्हें सुख एवं समृद्धि से भर देती हैं. ऐसा माना जाता है कि लगातार 16 शुक्रवार माता का व्रत रखने और विधी – विधान से अर्चना करने से माँ संतोषी प्रसन्न होती हैं और परिवार में सुख, समृद्धि और शांति का आशीर्वाद प्रदान करती हैं.

पूजन विधी

  • माँ संतोषी की आराधना विशेष रूप से शुक्रवार के दिन की जाती हैं. इनकी अर्चना के लिए लगातार 16 शुक्रवार तक व्रत रखा जाता हैं और पूजा की जाती हैं. साथ ही खट्टी चीजों का प्रयोग वर्जित हैं और अंत में उद्यापन किया जाता हैं. ऐसा करने से मनवांछित फल की प्राप्ति होती हैं. शुक्रवार के दिन प्रातः सिर से स्नान आदि करके माता का फोटो एक स्वच्छ देव स्थान पर रखते हैं और एक छोटे कलश की स्थापना करते हैं. अब माता का फोटो पुष्प इत्यादि से सुसज्जित करते हैं.
    * अब चना [जो कम–से –कम 6 घंटों तक पानी में भीगा हो] अथवा बेंगल ग्राम के साथ गुड़ और केला प्रसाद के रूप में रखते हैं. अब फोटो के सामने दिया जलाते हैं, मन्त्र का उच्चारण करते हैं और माता की आरती उतारते हैं और फिर प्रसाद ग्रहण किया जाता हैं.
    * आप चाहे तो पूरा दिन उपवास रखें अथवा दिन में एक बार भोजन ग्रहण करें. परन्तु यह हमेशा ध्यान रखें कि आपको इस पूरे दिन में किसी भी खट्टे खाद्य पदार्थ का सेवन नहीं करना हैं.
    * आपको यह सम्पूर्ण प्रक्रिया 16 शुक्रवारों तक करनी हैं और 16 सप्ताह बाद इसका उद्यापन करते हैं, जिसमे आप कम – से – कम 8 बच्चों को भोजन कराते हैं. परन्तु यहाँ भी ये ध्यान रखें कि उन्हें कोई भी खट्टे पदार्थ खाने को न दिए जाएँ और न ही आप उन्हें धन दें, जिसका उपयोग वे खट्टा पदार्थ खाने में कर सकते हैं.

# इस व्रत में प्रातः काल स्नानादि से निवृत्त होकर संतोषी माता को स्मरण कर दंडवत प्रणाम करें। पूजा करते समय जल से भरा कलश रखकर उसके उपर गुड़ और चने से भरा कटोरा रखें। कथा कहने और सुनने वाले अपने हाथ में गुड़- चना अवश्य रखें और मन ही मन संतोषी माता की जय बोलते जाएं। पूजा के लिए गुड़- चना लेते समय सवाई का ध्यान रखें यानि अपने सामर्थ्य के अनुसार चना- गुड़ सवा रू., सवा पांच रू. या सवा ग्यारह रू. के बढ़ते क्रम के अनुरूप ही लें। कथा समाप्त होने पर हाथ का गुड़ चना गाय माता को खिला दें और कलश पर रखा चना गुड़ प्रसाद के रूप में बांट दें और स्वयं भी प्रसाद लें।

व्रत कथा:

बहुत समय पहले की बात है। एक बुढि़या के सात पुत्र थे। उनमें से 6 कमाते थे और एक निकम्मा था। बुढि़या अपने 6 बेटों को प्रेम से खाना खिलाती और सातवें बेटे को बाद में उनकी थाली की बची हुई जूठन खिला दिया करती। सातवें बेटे की पत्नी इस बात से बड़ी दुखी थी क्योंकि वह बहुत भोला था और ऐसी बातों पर ध्यान नहीं देता था।

एक दिन बहू ने जूठा खिलाने की बात अपने पति से कही पति ने सिरदर्द का बहाना कर, रसोई में लेटकर स्वयं सच्चाई देख ली। उसने उसी क्षण दूसरे राज्य जाने का निश्चय किया। जब वह जाने लगा, तो पत्नी ने उसकी निशानी मांगी। पत्नी को अंगूठी देकर वह चल पड़ा। दूसरे राज्य पहुंचते ही उसे एक सेठ की दुकान पर काम मिल गया और जल्दी ही उसने मेहनत से अपनी जगह बना ली।

इधर, बेटे के घर से चले जाने पर सास-ससुर बहू पर अत्याचार करने लगे। घर का सारा काम करवा के उसे लकड़ियां लाने जंगल भेज देते और आने पर भूसे की रोटी और नारियल के खोल में पानी रख देते। इस तरह अपार कष्ट में बहू के दिन कट रहे थे। एक दिन लकडि़यां लाते समय रास्ते में उसने कुछ महिलाओं को संतोषी माता की पूजा करते देखा और पूजा विधि पूछी। उनसे सुने अनुसार बहू ने भी कुछ लकडि़यां बेच दीं और सवा रूपए का गुड़-चना लेकर संतोषी माता के मंदिर में जाकर संकल्प लिया।

दो शुक्रवार बीतते ही उसके पति का पता और पैसे दोनों आ गए। बहू ने मंदिर जाकर माता से फरियाद की कि उसके पति को वापस ला दे। उसको वरदान दे माता संतोषी ने स्वप्न में बेटे को दर्शन दिए और बहू का दुखड़ा सुनाया। इसके साथ ही उसके काम को पूरा कर घर जाने का संकल्प कराया। माता के आशीर्वाद से दूसरे दिन ही बेटे का सब लेन-देन का काम-काज निपट गया और वह कपड़ा-गहना लेकर घर चल पड़ा।

वहां बहू रोज लकडि़यां बीनकर माताजी के मंदिर में दर्शन कर अपने सुख-दुख कहा करती थी। एक दिन माता ने उसे ज्ञान दिया कि आज तेरा पति लौटने वाला है। तू नदी किनारे थोड़ी लकडि़यां रख दे और देर से घर जाकर आंगन से ही आवाज लगाना कि सासूमां, लकडि़यां ले लो और भूसे की रोटी दे दो, नारियल के खोल में पानी दे दो। बहू ने ऐसा ही किया। उसने नदी किनारे जो लकडि़यां रखीं, उसे देख बेटे को भूख लगी और वह रोटी बना-खाकर घर चला। घर पर मां द्वारा भोजन का पूछने पर उसने मना कर दिया और अपनी पत्नी के बारे में पूछा। तभी बहू आकर आवाज लगाकर भूसे की रोटी और नारियल के खोल में पानी मांगने लगी। बेटे के सामने सास झूठ बोलने लगी कि रोज चार बार खाती है, आज तुझे देखकर नाटक कर रही है। यह सारा दृश्य देख बेटा अपनी पत्नी को लेकर दूसरे घर में ठाठ से रहने लगा।

शुक्रवार आने पर पत्नी ने उद्यापन की इच्छा जताई और पति की आज्ञा पाकर अपने जेठ के लड़कों को निमंत्रण दे आई। जेठानी को पता था कि शुक्रवार के व्रत में खट्टा खाने की मनाही है। उसने अपने बच्चों को सिखाकर भेजा कि खटाई जरूर मांगना। बच्चों ने भरपेट खीर खाई और फिर खटाई की रट लगाकर बैठ गए। ना देने पर चाची से रूपए मांगे और इमली खरीद कर खा ली। इससे संतोषी माता नाराज हो गई और बहू के पति को राजा के सैनिक पकड़कर ले गए। बहू ने मंदिर जाकर माफी मांगी और वापस उद्यापन का संकल्प लिया। इसके साथ ही उसका पति राजा के यहां से छूटकर घर आ गया। अगले शुक्रवार को बहू ने ब्राह्मण के बच्चों को भोजन करने बुलाया और दक्षिणा में पैसे ना देकर एक- एक फल दिया। इससे संतोषी माता प्रसन्न हुईं और जल्दी ही बहू को एक सुंदर से पुत्र की प्राप्ति हुई। बहू को देखकर पूरे परिवार ने संतोषी माता का विधिवत पूजन शुरू कर दिया और अनंत सुख प्राप्त किया।

उद्यापन अवश्य करें

इसी विधि से तब तक व्रत करते रहें, जब तक आपकी मनोकामना पूरी ना हो जाए। मनोकामना पूरी होने पर उद्यापन अवश्य करें। उद्यापन के लिए ढाई सेर खाजा, मोयनदार पूड़ी, ,खीर, चने की सब्जी और नैवेद्य रखें। घी का दीपक जला कर संतोषी माता की कथा कह, जयकारा लगाकर नारियल फोड़ें। इस दिन घर में कोई खटाई ना खाए, ना ही किसी को कुछ भी खट्टा दें। इस दिन 8 लड़कों को भोजन कराएं। लड़के अपने कुटुंब के हों तो अच्छा, ना हो तो ब्राह्मण बालकों, रिश्तेदारों, पड़ोसियों के लड़कों को बुलाएं। भोजन कराके यथाशक्ति दक्षिणा दें, जिसमें पैसे के स्थान पर कोई फल देना अधिक अच्छा होता है। इस तरह विधिपूर्वक पूजा- उद्यापन से घर में संतोषी माता की कृपा सदैव बनी रहती है।

॥ मैया संतोषी की जय ॥